ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है।
एक बार एक राजा अपने दरबार को सम्बोधित कर रहे थे। सभा समाप्त होने पर उनके मन में फल खाने की इच्छा हुई, उनकी इच्छा पर फल, तुरंत उनके समक्ष प्रस्तुत किये गए, उस समय राजा अपने कुछ मंत्री जनो और सभाजनों के साथ बैठे थे, राजा ने कहा कि आज वो फल को स्वयं ही काटकर खाएंगे, चूँकि विरोध करने का कोई प्रश्न था भी नहीं, ऐसे में चाकू से जब वो फल काट रहे थे, उसी समय उनकी अंगुलियां भी कट गयी, और उनसे खून बहने लगा, पूरे दरबार में अफरा तफरी मच गयी, लेकिन राजा के पास बैठे महामंत्री ने केवल ये कहा कि चिंता मत करिये महाराज ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है इसमें भी उसकी कोई अच्छाई होगी।
थोड़ी देर में राजवैद्य आये और राजा की पट्टी कर चले गये लेकिन सभा के कुछ लोगो ने महामंत्री के जाने के बाद राजा से एक सवाल पूछा की महाराज हमें महामंत्री जी की योग्यता पर तो कोई संदेह नहीं है पर फिर भी उन्होंने कहा की ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है तो आपकी अंगुलियों के कटने से ईश्वर ने आपके साथ क्या अच्छा किया, आपका तो इतना खून भी बहा और आपको पीड़ा भी हुई, इस तरह तो आपके साथ जब भी कुछ घटित होगा तो ये यही बात बोलेंगे।
राजा को सभाजनों की ये बात खटक गयी, राजा ने बिना अधिक सोचे, ये आदेश दिया कि महामंत्री को पद से हटा दिया जाए और उन्हें देश निकाला दिया जाए। आदेश के अनुरूप महामंत्री महल छोड़ कर वन में छिप कर जीवन जीने लगे, और तत्काल सभाजनों में से उस व्यक्ति को महामंत्री बनाया गया जिसने राजा के कान भरे थे। कुछ समय के बाद नए महामंत्री के साथ सेना की एक टुकड़ी लेकर राजा शिकार को निकल गये वे रास्ते में दूर निकल गए, सेना पीछे छूट गयी और शिकार की तलाश ने उन्हें घनघोर जंगल में फंसा दिया।
उसी जंगल में डाकुओं का एक समूह माँ काली की पूजा कर रहा था, और डाकुओं का सरदार अपनी डकैती से प्रसन्न हो, माँ को नर बलि देना चाहता था उसने अपने साथियों से कहा, कि जो लोग तुम्हें सबसे पहले मिले उन्हें तुरंत पकड़ कर ले आओ। इधर डाकू नर बलि के लिए व्यक्ति की तलाश में जंगल में निकल गए तो उन्हें रास्ते में राजा और नए महामंत्री जी मिल गए। डाकुओं ने दोनों को पकड़ लिया। वे दोनों बार बार कहने लगे कि तुम लोग जानते नहीं हो, कि हम कौन है?
पर डाकुओं ने उन्हें कह दिया यहाँ राजा, मंत्री, चोर, सिपाही सब हम ही है। बलि के लिए दो लोग और वो भी राजा और मंत्री, ये बात सुनकर डाकुओं का सरदार बहुत खुश हुआ। तुरंत दोनों को स्न्नान करवाया गया और बलि के लिए तैयार किया गया, तब अंत में मंत्रोचार करते पंडित ने कहा कि जिनकी बलि दी जा रही है, उनके अंग भंग नहीं होने चाहिए । जब अंग निरीक्षण हुआ तो राजा की अंगुलिया कटी हुई थी इसलिए उसकी बलि नहीं लगी,
लेकिन महामंत्री के सारे अंग सही थे वो नहीं बच पाए तब अकबर को डाकुओं के सरदार ने कहा कि यदि जान प्यारी है तो भाग जा आज मैं खुश हूँ ऐसे में राजा भागता दौड़ता जब महल पंहुचा, तो वहां जाते ही उन्हें समझ आया की पुराने वाले महामंत्री जी की बात सही थी। राजा ने तत्काल एक नया आदेश जारी किया कि जंहा कहीं हमारे पुराने महामंत्री जी हो वो तुरंत महल लौट कर आये, और उन्हें पुनः उनका सम्मान दिया जाए।
जब महामंत्री जी ने ये खबर सुनी तो वो भी महल पहुंचे, और महल पहुँच कर उनसे राजा ने कहा कि आप सही कहते थे कि ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है। अगर उस दिन मेरी अंगुलियां ना कटी होती तो मेरी गर्दन कट चुकी होती, आपको सच में धन्यवाद है पर महामंत्री जी मेरे मन में एक सवाल है कि ईश्वर ने आपके साथ क्या अच्छा किया,
तब महामंत्री जी बोले महाराज यदि आप कुपित होकर मुझे देश निकाला नहीं देते, तो मैं ही आपके साथ शिकार पर चलता और मेरे भी सारे अंग सही है। ऐसे में आपके कठोर फैसले के द्वारा ईश्वर ने मेरा भी रक्षण किया है। तब महाराज को समझ आया कि विषम से विषम परिस्थिति में भी ईश्वर गलत नहीं करता है, और गलत करने वालों को उनके अंजाम तक पंहुचा ही देता है।
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